शिक्षक दिवस पर विशेष
समै की बात न ह्वावू अर बगत कु फेर ना फ़र्कयों त धर्ती फर जीवन चक्र हमेशा एक जना रावो, परिवर्तन तें प्रकृति को नियम माने जांद यो ही समयचक्र च बल। बल "चैड़ी चुसण्यां" याने समय का हिसाब से जर्वत अर जर्वत का हिसाब से चलण ही सार्थक माने जांद। वर्तमानल हमेशा गाळी खै अर अतीत हमेशा पुज्यनीय रयो इनु मेरु अपणु विचार च, बल भै या काम ठिक नि होणु स्या काम खराब होणु अजक्याल पता नि क्या होणु! हमारा टेम फर इनु नि होन्दू छै उन होन्दू छै, उगैरा उगैरा यु बात अगसर आम जुबान से सुणण मा आंदविशेषकर दाना सयाणो गिचा से। चला त मि भी अपणा समै की स्कूल परम्परा को इनु भगिरथ काम धाद का माध्यम से नयां छंवाली का गुरुजी लोगों तक पौंछाणु कोसीस कनु छौं जु काम आज हम चाणा बाद भी नि कैर सकद, ये मा कैकु क्वी दोष नि बल्कि मितें बदलो कु परभो देखणु। वर्तमान शिक्षा कु व्यवसायिकण का ये कालखंड मा शिक्षा की पूरी औंनार ही बदलिग्ये जु आज से पैंतीस चालीस साल पैली छै, हाँ आर्थिक रूप से गरीबी त जरूर छाँ तब, पर लोग ज्यू मन का धनी छां अर ये धन मा सबसे बड़ो धन छायो अपणुपन जू आज क्वसों दूर दिख्यणु। ये अपनत्व की एक मिशाल छै स्कूल का मास्टर जी अर वे गों वलों को अपनत्व, जख गुरुजी सिद्धहस्तता से नोनू तें पढान्दा छाँ वख लोग गुरुजी की तन मन धन से सेवा भक्ति करदा छाँ ये सेवाकर्म की श्रेणी मा एक काम छायो न्योन्यालों स्कोल मा बस्योरा जाण, हमारा स्कूल मा ये पर्था मेरा सन छ्यासी मा पांचवीं का पास होंण बाद चार पांच साल तक रैयी वे का बाद देशी मास्टरणी जीका औणा बादहर्चिग्ये दगड मा वे गुरुकुल पर्था को आखरी अंश निबट ज्ञों ।
सटीक त याद नि छै पर सन चौरासी से पैली कक्षा आठ अर अठासी से पैली पांचवीं की बोर्ड परीक्षा होंदी छै हमारा यख ते टेम पर बोर्ड परीक्षा वालों तें गुरुजी राति स्कूल मा बसेरु मंगोंदा छाँ, देर राति तलक गुरुजी हम न्योन्यालों की पढ़े लिखे का दगड़ समाज संस्कृति अर संस्कारवान बणण की शिक्षा देंदा छाँ। जख स्यणकरों नोनो तें यु बसेरु सजा से छै वखि हुणत्याओं तें राम बुटी छै, बस्योरा (बसेरा) का वा एक साल मेरी जिंदगी का इनु समै छै जैकु ऋण देण नामुमकिन च। जख अजक्याल ट्यूशन या एक्स्ट्रा क्लास को घंटाभर पूरो होण पर मास्टर सवाल तें अद्दा छोड़ी बच्चों की छुट्टी कैर दुसरा दिन पर छोड़ी देन्दु वखि हमारा गुरुजी वे एक सवाल पर रातक बारा बजे देंदा छाँ। खैर कखि कखि आज बी ह्वला त इनि निस्वार्थ विद्या सेवा और सेवकों तें खुट्टा बानी सेवा लगोन्दू। पांच सितंबर शिक्षक दिवस का पावन पर्व पर मि अपणा ये संस्मरण का माध्यम से अपणा गुरुजी स्वर्गीय श्री विश्वेस्वर दत्त गौड़ जी अर श्री केसर सिंह बोरा जी तें सेवा लगोन्दू जों का अतुल्य परतापन दुन्यां दयखण लेख बणेन।
मेरु बसेरा काल उन्नीस सौ छयासी छायो, ना जाण कत्गा स्मरण छाँ जों तें याद करि आज बी मन वे ग्यारह सालो बालक बण जांद अर जब भी वे टेमे छवीं होंदी ज्यू मा कुतग्यली लगेंद। हम सब पांचवीं कक्षा का विद्यार्थियों को विस्तर भादो मैना बाद स्कूल मा ऐ जांदो छै बिस्तर बी अजक्यला जन म्वटि रजै गद्दा नि बल्कि एक दोखी या दरी एक चादर एक आद कमोटू/कंबल, बिजली नि छै सब्यों की अपणी डिबरी ल्ययीं रैन्दी छै, जों घोर मा मट्टी त्यले समस्या रैन्दी छै वा दूसरा दगड़ एडजस्ट ह्वे जांदो छौं। जाड़ोंsक दिनों मा कमरा मा आग जगोंदा छाँ लखड़ों क्वे कमि नि होंदी छै, होर छवटि क्लास वाला एक एक लखड़ो अर पांच वाला शाम सुबेर द्वी द्वी लखडा दगड़ लांदा छाँ। जै घोर मा दूध रैन्दू वा गिरेवाटरे शीशी पर दूध ल्यांदा छाँ, भुज्जी, घर्या दाल, चौंल अर घ्यू लोग श्रद्धा से गुरुजी तें देंदा छाँ। नोनी लकार वाली होंदी यू मातृशक्ति को देवत्व गुण छिन, वीं सब्बी व्यखुंदा गुरुजी का खाणु बणाण मा मदद करदां अर हम नोनू की डियूटी भांडा मज्यांण पर लगी रैन्द, जने गुरुजिन बोली जावा रे लड़को उन्नी हमरी रेस हुसैन बोल्ट से ज्यादा होंदी किलेकि जु पैली पौंछदू वे को हक़ भड्डू चाटण होन्दू छै, वे गुरु रसोई का भड्डू की दाल को जन स्वाद आज पांच सितारा तलक नि चितायी। राति पढ़ै का बगत जे तें निन्द औंदी वे कि सजा छै भैर स्कूला कोणा पर खड़ू होंण जख बटिन गदेरे स्यूंस्याट अर मिडखों टटराट सुणेन्दू छै वे गदेरा मसाणो तमाम किस्सा सब्यों तें पता छै फिर कैकी क्या मजाल वा खड़ू होणा डर से स्ये जावो, इनि एक दिन एक ढांट नोनु भैर बटिन गुम ह्वेगी छै द्वी गुरुजी राति ढूंडद ढूंड्द परेशान ह्वेज्ञा छाँ सुकर ह्वो बाद मा वे कु बुबा वे तें घोर बटिन वापस ल्येन तब संतोष ह्वाई, वा ढांट इले कि वा भै पांचवी क्लास मा सोलह सालों ज्वान छै अर ज़रा सीधो लाटो छै हम सब वे तें ढांट बोल्दन छायी।
हमारा गौड़ गुरुजी उम्रदराज छां अर नजीक का रोण वळा छाँ अर बोरा जी ज्वान नयां नयां मास्टर, सिं अल्मोड़ा का छाँ, बड़ा गुरुजी जरा शांत स्वभो का, गुस्सा पर पय्यां स्वटे बदिन चटम चटेल, ज्वान गुरुजी गुसैला फर मर्दा कम छाँ, द्वियों मा पढ़ाणो होड़ रैन्दू छै। ज्यादा राति जब नोना निन्दन डगमग कण लग जांदा छाँ त गुरुजी लोग किस्सा कानी सुणोदा छां, कानी पर सब्यों कि आँखी टक टककार और कंदूड़ा खड़ा हौंदा छाँ कब्बी कब्बी पढ़ै पैटर्न बदलणा अर जिज्ञासा वास्ता गीत, कानी चुटकिला कंपीटिशन बी रखदा छाँ। ब्यखुन्दा सब्बी विद्यार्थी अपणा घोर बटिन खाणु खै आंदा छा कब्बी कब्बी क्वे बासी भात ही खै संतोष करदू छै, गुरुजी लोग सब्यों तें जरूर पुछदा खाणु खायी नि खायी कैन क्या खैन, बासी भात वलौं तें गुरुजी पक्का रोटी खलान्दा छाँ जाड़ों रात एक टेम चा पक्की मिल्दी छै चा मा कब्बी कब्बी गुड़ों ठुंगार भी चल्दू किलेकि गिरेन मा चीनी कम औंदी छै। बार त्यौवार मा गुरुजी कैका वख जाऊं कख ना, फिर बुज्यडि ढेर लग जन्दी छै जै तें दुसरा दिन हम सब घर-घर का स्वाली पकोड़ी स्वाद लेन्दा छाँ। इनि नि छौं कि केवल पढ़े लिखे अर संस्कारों वळी बात होंदी ह्वली मौका मिळण फर बाळापनो वा उकत्याट कख शांत बैठ सकदू जरा सीं गुरुजी भैर या इने उने क्या लगि हमारु खिखच्याट सुरु, कब्बी कब्बी ये खिखच्याट को रुप फौन्दरी मा बदल्योण बैठ जांद छै, फौन्दर्या बी इन कि कंठी त पकड़याली पर हाथ क्वे न उठो, एक ब्वनो बेटा पैली मारिक दयखो हैकू ब्वनु तु दिखो अर द्वी बल्द जना म्यटयां रैन्दा दुसर आग मा घस्येडू डालण वलों कमि नि छै। हाँ ये काम मा नोनी जरा हिम्मत वळी छै कब्बी कै नोनी लड़े नोना दगड़ ह्वेगी त वेन झप झपाक द्वी चार मारी भैर भागी जन्दी छै गुरुजी मा सिकैत कन। कब्बी कब्बी बोरा जी चुपचाप भैर ड्वार बटिन मजा ल्येन्दा छाँ जब गुरुजी तें लगि जांद कि बात बड़ण वाळी चा त वा खांसी करि बोल्दा छाँ ऐ बच्चों क्यो हल्ला कर रहे हो गुरुजी का भितर औण से ही सिकैत की झमाझम बर्खा, जी इसने पैलि मेरे को माँ की गाळी दी, ना गुरुजी इसने पैली बोला न कि तेरु बाप कल्यो खाव्वा च, गुरुजी इसने मेरी कॉपी मा स्यायी फरायी, गुरुजी इसने ही पैली बल्द उज्याड् की बात बोली, गुरुजी न यू तुमारु नो भी बोल रहा था, पता नि कत्ग परकारे सिकैत होंदी छै जों तें गुरुजी एक स्वट्य्या मा निबटे देंदा छाँ।
इन बात नि छै कि आज क्वे मास्टर जी यति मेनत नि करद श्री उत्तम सिंह राणा जी, श्रीनगर जना गुरुपरम्परा का निर्वहन कन वाला कतिगा लोग सिद्धहस्त से नयां पौधों तें सींचणा छाँ। खैर बस्येरा बळी बात आज कति प्रासांगिक छिन ये नि बोल सकदा लेकिन ट्यूशन रुपी घुण तें जरूर नष्ट कर सकदा। वो समै भी त छायो जब पराबेट स्कूलों कु यति चलन नि छौं अर बड़ा बड़ा अधिकारी अर विद्धवान गौं का सरकारी स्कोल बटिन निकल्यां यू वों सत निष्ठावान गुरुओं की लगन को प्रतिफल छायो। वर्तमान मा सरकारी स्कूलों मा यति उदासीनता किले च मैं फौजी का समझ से बात भैर च ये कारण हमारा शिक्षक समाज का दग्ड्या ही जाण सकद। मि आशा करदू कि मेरा मास्टर भै लोग वे गरीब का प्रतिभाशाली न्योन्यालों ख्याल जरूर रखला जों विचारों मा पराबेट स्कूल मा पढ़ाणे सामर्थ नि छिन।
संप्रति : जे सी ओ पद १४ गढ़वाल राइफल्स