हिंदी लोकभाषा बनी रहे / भारत की अन्य भाषाओँ का रस हिंदी को परिपक्व करता रहे तो सम्प्रेषण का एक राष्ट्रीय स्वरुप सामने आएगा / आज का विश्व बाजार अपने स्वार्थों के चीथड़े पहना हिंदी का हास्यास्पद क्लोन बना कर हमारी मातृभाषा को गली-गली नचा रहा है / राज्य और आंग्लमनस्क निर्णायक मंडल भीड़ जुटाती वाग्देवी के इस स्खलित रूप पर प्रसन्न हैं / गणपति यदि कलम उठालें तो हिंदी मर्यादित होकर पुनः वाक-सिंहासन पर आरूढ़ हो, अभिव्यक्ति की पूरनमासी बन सकती है
देवनागरी याचक वाणी / गणिका हर सम्मलेन की
घुंघरू बांधे पेट पालती / ध्वजा, वाक्-आंदोलन की
आप्तनाद उन शिव शब्दों से / छेत्र स्वार्थ व्यभिचार करें
ज्ञान अहम् के भारोत्तोलन / भाषागत व्यापार करें
श्रीगणेश ही ढोंग बने हैं / राज्य भ्रमों को ढोता है
आक्रांता भाषा के सम्मुख / देशज आखर रोता है