हम सब जानते ही हैं कि पृथ्वी के सम्पूर्ण भौगोलिक परिवेश में मानव बस्तियां उस जगह की प्राकृतिक और आर्थिक संसाधनों की मौजूद संभावनाओं के आधार पर बसी हैं। देवभूमि उत्तराखंड पर्वतीय आँचल में बसा होने के कारण इसकी भौगोलिक और आर्थिक परिस्थितियां दूसरी जगहों से भिन्न हैं तथा यहाँ पर औद्योगीकरण की सम्भावना अपेक्षाकृत कम है। यहाँ कुदरती संसाधनों के साथ अधिक छेड़-छाड़ के दूरगामी परिणाम मानव के लिए विनाशकारी सि( हो सकते हैं। इस क्षेत्र में उपलब्ध बौ(िकता के अनुपात में आर्थिक सम्पन्नता का न होना एक गंभीर विषय है। यह जरूरी नहीं है कि आर्थिक प्रगति के लिए कल-कारखाने लगाकर रोजगार की व्यवस्था हो। आज के संचार युग में सबसे ज्यादा उपयोग उस लैपटाॅप और मोबाइल फोन का है जो हमें इन्टरनेट के द्वारा सम्पूर्ण विश्व से जोड़ता है। अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए, उदाहरण के तौर पर ऊबर और अमेजोन जैसी कंपनियों का जिक्र करना जरूरी है। ऊबर दुनियां की ऐसी सबसे बड़ी ट्रांसपोर्ट कंपनी है जिसकी अपनी कोई गाड़ी नहीं, इसी तरह अमेजोन विश्व का ऐसा सबसे बड़ा बाजार है जिसकी अपनी कोई दुकान नहीं, इस तकनीकी युग में ऐसे अनेक उदहारण हमारे सामने प्रस्तुत हैं। दुर्भाग्य सिर्फ यह है कि देश में विलक्षण बु(ि के कंप्यूटर और इलेक्ट्राॅनिक इंजिनियर होते हुए भी, माइक्रोसाॅफ्ट, इंटेल, एप्पल और फेसबुक जैसी बड़ी आधुनिक कंपनियों के मालिक हमारे देश में पैदा नहीं हुए, जबकि इन कंपनियों को चलाने में प्रबंधन से लेकर टेक्निकल वर्क फोर्स तक, अधिकांशतः भारतीय ही हैं। कारण स्पष्ट है कि हमारी मानसिकता नौकरी की है और हम अपना खुद का कोई भी कारोबार प्रारंभ नहीं कर पाते। हमारी सोच यह है कि हमारे प्रतिष्ठित शैक्षणिक सँस्थाओं में ये बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ आयें और मेधावी छात्रों को एक अच्छा वेतन देकर नौकरी पर रखें। इसीलिये, अधिकांश माता-पिता अपने बच्चों को कोचिंग केन्द्रों में मोटी फीस देकर प्रवेश दिलाते हैं ताकि उनको किसी अच्छे टेक्निकल इंस्टिट्यूट में आगे पढाई का अवसर मिल सके और वहां से वे किसी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी पा सकें। मकसद अगर नौकरी पाने का न होकर नौकरी देने का होता तो इन नौजवानों का तकनीकी ज्ञानार्जन का उद्देश्य अपना उद्योग स्थापित करने के लिए होता, जिसका सीधा लाभ देश की भावी पीढ़ी और अर्थव्यवस्था को मिलता। यह तो तकनीकी शिक्षा का हाल है, परन्तु देश के नामी 'इंडियन इंस्टिट्यूट आॅफ मैनेजमेंट' संस्थाओं में भी ज्यादातर छात्र अपना कारोबार खड़ा करने के लिए नहीं बल्कि दूसरों के कारोबार को आगे बढ़ाने के ध्येय से ही प्रबंधन में उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं। शिक्षा समाप्ति के बाद प्रारम्भिक धन उपलब्धि एवं कारोबार का अनुभव प्राप्त करने के लिए नौकरी करना भी आवश्यक एवं अति महत्वपूर्ण तो है, मगर वास्विकता यह है कि एक बार कोल्हू के बैल की तरह दूसरों के लिए काम करने की आदत पड़ जाती है और हर माह वेतन लेने की लत लग जाती है तो फिर वह हौसला गायब हो जाता है और तब सभी को सेवानिवृत्ति के बाद ही होश आता है। सरकारी नौकरों का तो शत-प्रतिशत यही हाल है किन्तु प्राइवेट सेक्टर में कुछ लोग ही बाहर निकलकर अपना कारोबार करने की हिम्मत रख पाते हैं। स्वयं को और देश को समृ( बनाने के लिए इस पुरानी मानसिकता का त्याग करना जरूरी है।
पाषण काल से ही मानव बदलते समय के हिसाब से प्राकृतिक संसाधनों और अपनी बौ(िक क्षमता का उपयोग बेहतर जीवन के लिए करता आया है। आज जब संचार तकनीकी का बोलबाला है तो कितने शिक्षित नागरिक अपनी बौ(िकता को सम्पन्नता के लिए प्रयोग कर पा रहे हैं? क्या 'इलेक्ट्राॅनिक गजेट्स' इल्म प्राप्ति के बजाय सिर्फ मनोरंजन के साधन मात्र रह गए है? अगर यह असत्य है तो क्यों समाज अपने बलबूते पर तेज गति से आर्थिक उन्नति की ओर अग्रसर नहीं है? क्या स्वयं को नये समय के अनुरूप ढालने में अक्षम होने के लिए भी व्यवस्थाएं ही जिम्मेदार हैं? अतः जीवन में सकारात्मक सोच के साथ-साथ आर्थिक सोच भी पैदा करनी जरुरी है, ताकि आधुनिक तकनीक से आर्थिक समृ(ि प्राप्त कर सकें। 'हलंत पत्रिका' का प्रयास अपने पाठकों का ध्यान साहित्यिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और सांस्कृतिक क्षेत्र से जुड़े वर्तमान मुद्दों के मंथन के साथ-साथ आर्थिक जागरूकता की तरफ भी आकर्षित करने का रहा है। एक प्रसि( कहावत है कि धन से अधिक कीमती धन का ज्ञान होता है। धन तो आता जाता है मगर आर्थिक ज्ञान मानव को विपरीत परस्थितियों में भी सबल बनाए रखता है। कहावत है कि मारवाड़ी का बच्चा कभी भी और कहीं भी भूखा नहीं सोयेगा, क्योंकि उसे धनार्जन का इल्म परिवार से मिला होता है। पिछले अंकों में हलंत ने इन विषयों पर अनेक जानकारियां प्रकाशित की हैं जिनके माध्यम से बहुत ही सरल तरीके से बताया है कि स्टाॅक मार्केट की जानकारियों से कैसे एक छोटी सी धन राशि से निवेश शुरू करके अत्यधिक लाभ कमाया जा सकता है और वह भी सिर्फ अपने मोबाइल पर क्लिक करके।
हमारी पौराणिक कथाओं में लक्ष्मी जी को चंचल कहा गया है, क्यूंकि धन का स्वभाव एक जगह पर रहने का नहीं है। वह जितना गतिमान होता है उतना ही बढ़ता जाता है, अतः हर एक साधक के पास इसको आना ही है।
इस अंक में, हम एक नए बाजार के बारे में जानकारी लेंगे, जिसे 'वस्तु बाजार' या 'कमोडिटी मार्केट' कहते हैं, इसे राष्ट्र की अर्थ व्यवस्था का दूसरा इंजन भी कह सकते हैं। यह व्यापार प(ति विशेषकर उनके लिए है जिन्हें उद्योग जगत की कार्यशैली की जानकारी भले ही कम हो मगर दुनियां में उपलब्ध प्राकृतिक वस्तुओं की मांग और पूर्ति की ज्यादा समझ होती है। आदिकाल से ही वस्तु बाजार में व्यापार होता रहा है, जैसे सोने, चांदी, कपास, बीज, मसाले, अनाज इतियादी। अधिकतर लोगों में इन नैसर्गिग वस्तुओं की रूचि और समझ बहुत अधिक होती है। इस ज्ञान का उपयोग कमोडिटी मार्केट में धन लाभ में प्रवर्तित किया जा सकता है। वस्तुओं की कीमतें इनकी पैदावार और खपत के आधार पर घटती-बढती रहती हैं और निवेशक इस जानकारी का उपयोग अपने फायदे के लिए करता है। इन वस्तुओं का व्यापार भी 'सेबी' द्वारा नियंत्रित कमोडिटी एक्सचेंज के माध्यम से ही होता है। इसके लिए निवेशक को उन 'ब्रोकरेज हाउसेस' में नामांकन करना होता है जो देश के कमोडिटी एक्सचेंज में ट्रेडिंग के लिए पंजीकृत हैं। यह बाजार स्टाॅक मार्केट से बिलकुल अलग है। यहाँ स्टाॅक मार्केट की तरह कंपनियों में हिस्सेदारी नहीं होती है बल्कि वस्तुओं की पिछली और आज की कीमतों के आधार पर, भविष्य में होने वाले वस्तु विशेष की मांग और आपूर्ति का अनुमान लगा कर कीमत तय की जाती है। उदहारण के तौर पर इस बात का अनुमान किसान भी लगा लेता है कि जिस कृकृषि उत्पाद की पैदावार अधिक हुई है उसका भाव गिरेगा और कौन से मौसम में किस-किस कमोडिटी की मांग बढती है तो स्वाभाविक रूप से उन दिनों उनका भाव आसमान छुयेगा। अभी वर्तमान में देश में मुख्यतः दो 'कमोडिटी एक्सचेंज' विद्यमान हैं, एम.सी.एक्स और एन.सी.डी.ई.एक्स.। सर्व प्रथम, 'एम.सी.एक्स.' यानि 'मल्टी-कमोडिटी एक्सचेंज आॅफ इण्डिया लिमिटेड' पर खरीद- फरोख्त होने वाली वस्तुओं के बारे में जानकारी हासिल करेंगे। सारी प्राथमिक वस्तुओं को दो भागों में बांटा गया है, कृकृषिजन्य उत्पाद एवम् गैर कृकृषि उत्पाद। 'एम.सी.एक्स.' में ज्यादातर गैर कृषि उत्पादों की खरीद-फरोख्त होती है। इन्हें तीन भागों में रखा गया है जैसे बुलियंस यानि कीमती धातुयें जैसे सोना, चांदी, बेस मेटल्स यानि तांबा, अल्म्युनियम, लेड, निकेल, इत्यादी और उर्जा से जुड़े पदार्थ जैसे क्रूड आयल और प्राकृतिक गैस। कृषि उत्पादों से सम्बंधित वस्तुओं में 'एम.सी.एक्स.' पर सिर्फ मेंथा आयल, इलायची, कपास और कच्चा पाम तेल आदि की ही ट्रेडिंग होता है जबकि 'एन.सी.डी.ई.एक्स.' कमोडिटी एक्सचेंज पर अन्य सभी कृकृषि उत्पादों की खरीद-फरोख्त संभव है। यहाँ पर जौ, बाजरा, चना, मकई, गेहूं, कपास, रबर, आलू, खाद्य तेल एवम इनके बीजों जैसे सोयाबीन, सरसों, के साथ-साथ दालें, चीनी, गुड़, काली मिर्च, हल्दी, जीरा, लालमिर्च और धनिया आदि कृकृषि उत्पादों को बेचा खरीदा जा सकता है। नाॅन-फार्म सेक्टर में गोल्ड, सिल्वर और क्रूड तथा फार्म सेगमेंट में खाने के तेल, दलहन और मसाले आदि का ज्यादा व्यापार होता है। कमोडिटी एक्सचेंज से ट्रेडिंग करना किसानों को मजबूरी में अपना कृषि उत्पाद दलालों को बेचने से बचाता है, साथ में उन्हें अपने उत्पाद के अच्छे बाजार भाव मिलने का भी अवसर मिल जाता है। कमोडिटी ट्रेड के लिए अलग से डीमैट या ट्रेडिंग अकाउंट की जरूरत होती है। यहाँ व्यापार 'फ्यूचर्स कान्ट्रैक्ट्स' के रूप में होता है जिसमें उपरोक्त वस्तुओं का फ्यूचर डेट पर डिलीवरी के लिए पहले से तय कीमत पर खरीद- फरोख्त के कान्ट्रैक्ट्स होते हैं। सभीकृकृषि जन्य उत्पादों के कान्ट्रैक्ट्स की वास्तविक डेलिवरी होती है जिसे कमोडिटी एक्सचेंज द्वारा मान्यता प्राप्त भंडारगृहों में जमा करना होता है। यह भण्डारण व्यवस्था देश के अधिकांश शहरों में उपलब्ध होती है। गोल्ड और सिल्वर को छोड़कर बाकी सभी नाॅन-फार्म प्राॅडक्ट्स का निफ्टी फ्यूचर्स पर कैश में सेटलमेंट होता है। माल गोदामों में उत्पादों की डिलीवरी और उनकी निपटान गतिविधियों में सुधार लाने के लिए बाजार नियामक 'सेबी' कृषि उत्पादों के भंडारण नियमों की समय≤ पर समीक्षा करती रहती है, ताकि कमोडिटी एक्सचेंज सुचारू रूप से चलते रहें। कमोडिटी ट्रेडिंग में दिलचस्पी रखने वाले इनवेस्टर्स को मार्केट की समझ पैदा करने के बाद ही एंट्री करनी चाहिए। स्टाॅक मार्केट की ही तरह 'कमोडिटी फ्यूचर्स' में भी अपने रिस्क होते हैं। जिनकी प्राथमिक जानकारी लेना आवश्यक है। देश के विकास के मध्यनजर कमोडिटी एक्सचेंज के सामने जनमानस, शिक्षा संस्थानों एवम किसानों को अधिक से अधिक प्रिशिक्षण देने की चुनौतियां हैं, ताकि सभी इस व्यवस्था से जुड़ कर लाभ उठा सकें। प्रस्तुत अंक में सिर्फ कमोडिटी बाजार से सम्बंधित कुछ मूलभूत जानकारियों को साझा करने का प्रयास किया गया है। आशा करते हैं कि आने वाले समय में अधिकांश निवेशक इस क्षेत्र में प्रवेश करते जायेंगे और आर्थिक विकास के इस इंजन से देश में विकास की रफ्तार कई गुना बढ़ती जाएगी। इससे संपूर्ण भारतवर्ष में आर्थिक चेतना का संचार होने के साथ-साथ नयी तकनीकी को आर्थिक लाभ के लिए उपयोग में लाने का भी माहौल बनता जायेगा। फिर क्या मैदान, क्या पहाड़, सिर्फ इन्टरनेट कनेक्टिविटी होने से ही जागरूक देशवासी आर्थिक निर्भरता से कोसों दूर पहुंचकर सम्पन्नता की मंजिल छू पाएंगे। जय हिन्द। जय देवभूमि।