किताबें पढ़ती हैं मुझे

 

कि जबसे मैंने किताबों से दोस्ती गाँठ ली

किताबों ने भी मेरी मंशा भाँप ली।

          खिलखिलाती हूँ मैं इनके साथ

          पकड़ती हैं जब ये मेरा हाथ...

कभी गोद में बैठकर,

कभी सीने से लगकर,

कभी मेज पर करवट बदल कर

तो कभी तकिए में सिमटकर।

       कभी मैं इनके पास जाती हूँ

      कभी ये मेरे पास आ जाती हैं।

ले जाती हैं मुझे ऐसी दुनिया में

जहाँ होती हैं सिर्फ ये और मैं....

और होती हैं ढेर सारी बातें......

 

बातें........ दुनिया जहान की

               'आरती' और अज़ान की

                बेवक्त आते तूफान की।

 

बातें........प्रकृति की, गगन की

              विरह और मिलन की

             सहरा में खिलते चमन की।

 

बातें.......नदी की, पर्वत की

             पानी और शरबत की

             अमीरी में गुरबत की।

 

 बातें......सूरज की, चाँदनी की

             रोशनी और रागिनी की

          बेमौसम चमकती दामिनी की।

 

बातें....... जुगनू की,सितारों की

              पतझड़ और बहारों की

              झोपड़ी संग मीनारों की।

 

होती हैं बातें...... धूप, वर्षा,शीत की

                      रस्मो रिवाज, रीत की

                 मिले बिछड़े मनमीत की।

 

बातें.......हमवतन, हमनिवालों की

               देश के दलालों की

              नित हो रहे घोटालों की।

 

बातें.......चाय की, पकौड़ों की

             सीधी सड़क के मोड़ों की

              देश के भगौड़ों की ।

 

बातें.......पाकिस्तानी आतंकों की

               चीन के टैंकों की

           भारत के लुटे पिटे बैंकों की।

 

सच कहूँ तो मैं नहीं पढ़ती

किताबें पढ़ती हैं मुझे......

मुझसे अधिक समझती हैं मुझे।

      करवाती हैं मेरा परिचय मुझसे

      कैसे कहूँ कितनी मौहब्बत है इनसे.....

कि अब तो कम्बख़्त नींद भी तभी आती है...

जब किताब सीने से लग जाती है....

जब किताब सीने से लग जाती है।