भीगी देह वो बूँद कतारें / वे बौछारें मूसलाधारें
उमड़ घुमड़ ,वे मेघ पावने / छातों की वे बन्दनवारें
टप -टप ,रिमझिम राग धुरंधर / वर्षा ऋतु के गीत परम
निर्वस्त्र धरा स्नान देखकर / काम पुकारें हुईं चरम
सिद्धहस्त उस बूँद ताल पर / रसिक पर्ण सिर हिला रहे
जलाभिषेक गन्धर्व विधि पर / लंबकर्ण गुनगुना रहे