समुद्र तो शाश्वत सत्य ...
जिस पर बढ़ते सबके पग ..
रेत पर अंकित पग चिन्ह ...
खो जायेंगे एक दिन लहरों संग ..
सदियों से चल रहा ...
सदियों तक चलता रहेगा ..
जीवन-मृत्यु का यही क्रम ..
सिकन्दर हो या हो फिर कोई गजनी ...
समुद्र के थे वे बटोही ...
दुनिया पर शिकश्त करने वाले...
इसी रेत पर गए थे इक दिन मिल
जीवन में करें ऐसा कर्म ..
मानवता के पदचिन्ह ...
धो न सके कभी कोई लहर ...
समुद्र है शाश्वत स्वर्ग का मार्ग ...
रेत अच्छे बुरे कर्मो का धरातल ...
मृत्यु को प्राप्त करने से पूर्व ...
छोड़ जाओ पीछे अपने निशाँ ...
के वक़्त की हर आँधी के बवंडर में ...
उद्घोषित होता रहे तुम्हारा मान-
सम्मान