चक्र सुदर्शन, कमल चतुर्भुज
तुम्हीं ज्ञान के श्वेत हंस
गणपूजित तुम, गंगाधर सुत
पार्वती के श्वेद अंश
महाचाप धर राम तुम्हीं हो
चंडी के रणकौशल हो
दर्शन के नवनीत लुटाते
बाल मुरारी, छल-बल हो
शंकर की सन्यस्त ध्वजा तुम
पुरुषार्थों के लक्छ्य तुम्हीं
तुलसी-पद सी मर्यादा हो
मीरा के मन-साक्छ्य तुम्हीं