वक्रतुण्डोपनिषद
पितृ, देव हैं, हम प्राणों के
श्राद्ध हमारी श्रद्धाएं
स्वान,काग, गौ भाग दिए
विस्तार जीव का समझाएं
तर्पण-अर्पण, पिंड विसर्जन
मुक्ति यज्ञ, अभिक्रियाएं
अंगभूत सब दृश्य जगत
अद्वैतभाव, जन गाथाएं
प्राण पितर तुम, देह भष्म तुम
अण्ड -पिंड ब्रह्माण्ड तुम्हीं
मुक्तिमार्ग हो, परम धाम हो
वैतरणी, वैकुण्ठ तुम्हीं