फिर उगेंगे
मेरे पहाड़ पर
बर्फ, पेड़, बुग्याल और हरियाली
फिर उगंेगे
घर-मकान, खेत-खलिहान
फिर बनेंगे पुल
नदी किनारे बनेंगे
खेत के मैदान
लगेंगे मेले और थौल
बजेंगे भंकोरे, गूजेंगे ढ़ोल
जो हुआ,
पहाड़ ने कब किया?
पहाड़ तो आज भी जिन्दा है
पहाड़ को पता है
धरती उजड़ेगी, खेत बहेंगे
नदियां उफनेंगी, बर्फ पिघलेगी
पहाड़ टूटेंगे
पहाड़ को पता है
जो नहीं पूजते प्रकृति
दम भरते हैं जो
जीतने का, लूटने का
करते हैं उपहास
उजाड़ते हैं नदियां, देवस्थल
खेत, गांव, स्कूल और पुल
पहाड़ तो वहीं खड़ा है
उजड़ें हैं वो, जो आये थे
उजाड़ने, लूटने, जीतने, विखेरने
अब वे ही लगे हैं
खिसकने...पहाड़ से
जिन्दा होगा पहाड़