अभी उपधान बाहों का गले का हार बनने दो
अभी जीवन परस्पर मृदु मिलन का भार बनने दो।
सजी परिणय की वेदी जब सुकोमल भाव पुष्पों से
मुझे चुम्बन छुअन का अमृत जीवन सार बनने दो।
अभी तो मौन है सौंदर्य का साम्राज्य सोने दो
अभी तो पंथ का प्रियतम प्रतीक्षा ताप सहने दो।
तभी नव इंदु की किरणंे सजग हो स्वागतम करती
मुझे सौंदर्य के माधुर्य में स्नान करने दो।
अभी तो वार्ता को नीरवों के पृष्ठ पढ़ने दो
अभी नैनों की बेचैनी को पलकों पर सिमटने दो।
तभी मन की तरंगें बंधनों को तोड़ना चाहती
मुझे परिणय की पूजा का निमंत्रण पत्र पढ़ने दो।
अभी तो भोर है कुछ दूर पूनम को निरखने दो
अभी छिटके हुए इन तारकों के हार सजने दो।
सजी सौंदर्य की कविता स्वयंवर की प्रतीक्षा में
अभी बस राम आने दो अभी बस कृष्ण आने दो।
कृष्ण को आने दो