क्या सोच कर उतरे थे हम
उत्तराखण्ड राज्य की लड़ाई में
गैरों से तब जीते थे हम
अपनों से अब हारे लड़ाई में।
वो गलियां याद आती हैं
वो सड़कें याद आती हैं
लगाये थे गगन भेदी जहाॅं
हमने नारे लड़ाई में।
ओ खटीमा और ओ मसूरी
तुम्हीं बताओ पंत और बलूनी
मिलेगा हमको राज्य ऐसा
क्या सोचा था लड़ाई में।
ओ सिंह रणजीत ने वाले
ये खामो क्यूंॅ है पसरी
कहांॅं गया आदर्ष राज्य का
सपना,जो देखा था लड़ाई में।
अब कहाॅं वो गीतों की गंगा
कहाॅं है कलमों की मषालें
लगाई थी जिन्हों ने आग
एक दिन पानी पर लड़ाई में।
ओ बदरी , केदार बताओ
ओ गंगा की धारा बताओ
खो गये हैं, वो लोग कहांॅं
ै जो उतरे थे उस लड़ाई में।
-हेम चन्द्र सकलानी