उन्होने मुझे सोते से जगाया,
हाथ बढाकर उठाया ।
कैसे कहता मैं वे बेगाने
जो मुझे आसमान की
ऊँचाई दिखा रहे थे।
मैं चलता रहा उनके पथ
कैसे कहता मैं कि
कुछ हो रहा गलत
करता रहा वही सब
जो वे करवा रहे थे।
दिन महीनें बन बीते,
महीने साल में बदले,
वर्षों हम यों ही
चलते रहे साथ।
सामान्य चलन सी
हो गई थी जिंदगी में
सही गलत की बात।
कुछ घटा सही पर
कुछ गलत भी घटता रहा
सही के साथ।
किंतु कब तक छिपा सकते थे
सब गलत।
अनायास आंधी का झोंका
आया और खुल गये हरफ।
कुछ चुरा लिया गया है
चिल्लाने लगेे अधखुले पृष्ठ।
बोझ से कम नहीं होता,
सत्य उकेरना, कैसे संभलता,
संभालता किसे-किसे
उलझा हुआ था सब
हो रहा था उलट-पुलट ।
टकराने लगी व्यवस्थायें,
प्रछन्नतायें बाहर आने लगी,
उत्तरहीन थे प्रश्न,
कट-कटकर गिरे जमीर तब,
किंतु सच इतना
भर भी नहीं था।
कुर्सी ने कुर्सी को तोड़ा
या कुर्सी ने कुर्सी को मोड़ा
या कांटे ने कांटे से
कांटा निकलवाया या
कांटा खुद बाहर आया।
किंतु एक एक कर कई
प्राण पर संकट आया।
जमीर जगा चुकी आत्मा हुई
मानों भूभल में दबी आग,
निबटाने में उसे पहरेदारों का
क्लेश भी सामने आया।
सुरक्षा के घेरे में असुरक्षित
जीवन आज,
सुरक्षा के चक्रव्यूह को,
तोड चुप रहने का आगाज
जमीर का अंत लाया ।
बदली बदली सी शक्ल में
सुरक्षित घेरे में भी भ्रष्ट
अपराधी नाग,
बाहर से भीतर
ले आया अपराध,
यमराज बना
मौत के फन काढ़।
शत्रुवत् जाल बिछा मेरे विरूद्ध
अकेला मैं शस्त्रहीन
कटघरे में वह कई के साथ,
शायद सच के
भय से था घबराया
पाप अपराध। ।
खुद ही जड़े आरोप,
भेजा विरल एकांत
फिर घातक प्रहारों से
तड़पा तड़पाकर किया प्राणांत,
किंतु आश्वस्त नहीं हुआ था
अब तक पाप।
घटना अभी भी
बहुत कुछ था शेष ।
हत्या को आत्महत्या
बनाने की लगी थी रेस।
किंतु आत्मा अमर है
तो सत्य भी कब मर सका है।
अन्याय पोसती
सत्ताओं के गढ़ ढहे।
जब-जब यों चक्रव्यूह गढ़े गये।
जिंदा रह गया उनका
पाप अपराध
आवाज नहीं रही थी
किंतु मिटा कर भी
मिटा न पाये
जालिम जुल्म के निशान।
चीख-चीख कर
बोल उठी छलनी मृत काया,
अब जीना तेरा भी नहीं आसान।
की चोट निर्दोष पर,
बच कर भी न बच पाओगे
पापी तुम हत्या कर।
चैन न लेने देगा,
लिख चुके स्वयं तुम
अंधकार भरा इतिहास।
अन्यायी देख पाताल में
दबकर भी सत्य
जिंदा बाहर निकला है।
चक्रव्यूह में कल
अभिमन्यु मारा गया था
आज जे डे और
सचान का शिकार हुआ है।
न जाने कितने कब से
निर्दोष को अन्याय का
साथ न देने की
मिल रही सजा है।
युग बीत गये,
खो गये शिकारी गर्त में,
किंतु शिकार मरकर भी
आज तक जिंदा हैं।