(1)
हां, होता है
पहाड़ की तरह
हर एक मन में
एक ज्वालामुखी होता है,
कुछ लोग
मृत ज्वालामुखी का
बोझ उठाये
जीवन भर घिसटते रहते हैं
और कुछ खौलते लावे में
डुबकी लगाकर
अग्निपुत्र बन जाते हैं।
(2)
कल तक
पहाड़ पर था
शहर की कामना करता था
आज बरसों से
शहर मेें हूँ
और पहाड़ पूरी तरह
विस्मृत हो गया है।
(3)
यह कैसा पहाड़ है
जहाँ सटौरिये /ब्लैक मार्कटिये
रिश्वतिये / हवा लिये
बेरोकटोक पलक झपकाते
सातवें माले तक
पहंुच जाते हैं
और पहाड़ पुत्र
अभाव अन्याय
अनाचार, कर्ज के
सर्वग्रासी सहरा में
समूचे अस्तित्व की
बलि देकर भी
मुंह की खाते हैं।
पहाड़