सौण्याः गंजळि कि घमाक मेरि, पधानि जरा सूण दौं
उधड़ ग्याई जिन्दड़ि जरा, ऊन मेरि बूण दौं
रुकमिः सौंजड़्या तू लाटू छैं, ससुरड़्यौं सि बाठू छैं
आंखि तेरि अग्णबोट, चुलखन्दा सि माटू छैं
सौंजड़्या तू...
सौण्याः पाणि बिन घराट क्या च, गाढ़ कु घमघ्याट छौं
गाति गौ{णा चमकि जला, घाम कि अंग्वाळ छौं
ओना-मासि, धम्म-धौंकी, पाटि-पा{ड़ा सूण दौं
उधड़ ग्याई...
रुकमिः घाम कि गरमैस बिरणि, देखि कैन स्याळ-सींग
दूध का उमाळ झूठा, माया कु संुस्याट बींग
आंख्यौं मा नी हीट चुचा, ठाठ कौर छांटू छैं
आखि तेरि...
सौण्याः घाम अछले जान्दू कनै, गैणा डिबला खणौन्दा
डाळा-बुटळा रात र्वेकि, आंसू किलै सजौन्दा
कांसि पिड़ा छणछणाट, बाच छिपीं सूण दौं..
उधड़ ग्याई.....
रुकमिः फूल किलै रंगदा जुनखा, बोण किलै किरौन्दा
जोन किलै धोन्दि मुखड़ि, चखुळा भौण लगौन्दा
मन-पुराण भोळ बंचला, तन कि कथा सूण दौं
सौण्याः उधड़ ग्याई जिन्दड़ि जरा, ऊन मेरि बूण दौं...
युगल-गीत (छत्रभंग- गढ़वाली नाटक )