कद्दू का लाल भृंग ( बीटल ) कीट तेज चमकीला नारंगी रंग का तथा आकार में लगभग 7 मिलि मीटर लम्बा व 4 . 5 मिली मीटर चौड़ा होता है।
कद्दू वर्गीय फसलों कद्दू, खीरा,तोरी, लौकी की फसलों को इस कीट के वयस्क व ग्रब्स ( लार्वा ) दोनों ही नुकसान पहुंचाते है। करेला की फसल में इस कीट का प्रकोप कम देखा गया है।
वयस्क कीट , बीज पत्रक, कोमल पत्तियों, फूल व फलों का भक्षण कर नुक्सान पहुंचाते हैं। बीज अंकुरण के पश्चात् बीज पत्रक से लेकर 4 - 5 पत्तियों की अवस्था तक इस कीट का प्रकोप ज्यादा रहता है।
इस कीट के लार्वा / ग्रब्स पीलापन लिए हुए सुफेद रंग के होते हैं तथा जमीन के भीतर रहते हुए पौधों की जड़ों व भूमि गत तने के भाग का भक्षण कर छेद करते हैं इन स्थानों में बाद में फफूंद पैदा होने से पौधे सड़ने लगते हैं। भूमि की सतह पर लगे फलों को भी ये ग्रब्स नुकसान पहुंचाते हैं।
इस कीट का आक्रमण फसलों पर माह मार्च से अक्टुवर माह तक होता है।
इस कीट का जीवन चक्र 25 - 37 दिनों में पूरा होता है तथा मार्च से अक्टुवर तक इस कीट की पांच पीढि़यां हो जाती है।
नवंबर से फरवरी माह तक यह कीट सुसुप्ता अवस्था में भूमि के अन्दर या घास फूस में छुपा रहता है।
कीट नियंत्रण-
1. यदि बीज अंकुरण के पश्चात् बीज पत्रक व शुरू की पत्तियों को कीट द्वारा ज्यादा क्षति पहुंचाई गई हो तो ऐसे पौधों को उखाड़ कर पौलीथीन की थैली में इकट्ठा कर नष्ट करें तथा उनके स्थान पर फिर से बीज की बुवाई करें।
2. सुबह के समय कीटौं की सक्रियता कम रहती है इसलिए पौधों पर लगे कीटों को हाथ से पकड़ कर इकट्ठा कर नष्ट करें।
3. एक कीलो लकडी की राख में दस मिली लीटर मिट्टी का तेल मिलाएं । मिट्टी का तेल मिली हुई लकड़ी की राख कीटों से ग्रसित खड़ी फसल में बुरकें। पौधों पर राख बुरकने हेतु राख को मारकीन या धोती के कपड़े में बांध कर पोटली बना लें, एक हाथ से पोटली को कस्स कर पकड़े तथा दूसरे हाथ से डन्डे से पोटली को पीटें जिससे राख ग्रसित पौधों पर बराबर मात्रा में पढ़ती रहे।
4. पौधों की जड़ों के पास के लार्वा को नष्ट करने हेतु पौधों की जड़ों के पास निराई गुड़ाई कर मिट्टी तेल मिली लकड़ी की राख का बुरकाव करें।
रासायनिक उपचार--
मैलाथियान या इमीडाक्लोप्रिड कीट नाशक दो मिलीलीटर दवा एक लिटर पानी ( एक चम्मच दवा तीन लिटर पानी ) में घोल बनाकर सुबह के समय ग्रसित पौधों पर तीन दिनों के अन्तराल पर तीन छिड़काव करें । एक ही दवा बार बार इस्तेमाल न करें। दवा के घोल में 20 ग्राम देशी गुड़ प्रति लीटर की दर से मिलायें। दवा के झिड़का करने पर यह कीट उड़ जाता है जिस कारण दवा के सम्पर्क में नहीं आ पाता गुड़ मिली दवा के झिड़का से यह कीट मीठे के कारण दवा के इस पानी को पीने के कारण मर जाते हैं।
ग्रब्स/ लार्वा के नियंत्रण हेतु दवा के घोल से पौधों के पास की भूमि को तर कर लें।
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