प्रेम, देह की धर्मयात्रा है ,
भ्रमित-भाव का भ्रमण है...
ऐन्द्रिक सुख है, मन सुविधा है ,
कामसिक्त आकर्षण है...
नैन-तटों पर भारी फिसलन,
संबल मर्यादाओं के
स्मित डसते मर्मस्थल को,
विश्राम-स्थल बाँहों के....
मूक पुष्प-पशु कैसे पढ़ते,
प्रेम पत्र वाग्देवी का
पूज्य गजानन हस्त लिखित, वह /
विषद व्याकरण वाणी का