उदास है मन बहुत
ग़मगीन हैं रातें
व्याकुल-आकुल सी है भोर
चल सखा
ले चल मुझको
दूर बहुत दूर
वन-उपवन में
लहकतेे खेतों की ओर
अहा !
देख ज़रा
वहाँ
मोगरा पलाश
अमलतास
विहंसते
नव- यौवन
नव रूप धरे
गदराये हैं
आम्र- बाग
कोयल गा
रही है फाग
खुशबू से सब
है सराबोर
हर एक कोना
हर एक छोर
चल सखा
ले चल मुझको
दूर बहुत दूर
वन-उपवन में
महकते खेतों की ओर
वहाँ
तितलियाँ हंस रही हैं
भ्रमर रस चख रहे हैं
झरझर निर्झर
झर रहे हैं
सर्बत्र
गुनगुन कलकल
का है
शोर
चल सखा
ले चल मुझको
दूर बहुत दूर
वन-उपवन में
हरे भरे खेतों की ओर
सर सर चल रही
हवा मतवाली
झूम रही मस्त
डाली डाली
न कोई बंदिश
न कोई रोक
चल सखा
ले चल मुझको
दूर बहुत दूर
वन-उपवन में
जीवन से भरे
खेतों की ओर
बीतें सुहानी रातें
तेरे आलिंगन व
बांह-पाश में
कमसिन देह-कली
कसमसाये
छलछलायें
होंठों पर होंठों के प्याले
रातें "रतजगा" हो जायें
पलकों को निंदिया न भाये
इन्तज़ार करे यों नित भोर
चल सखा
ले चल मुझको
दूर बहुत दूर
वन-उपवन में
महकतेे खेतों की ओर