भारत ही नहीं अपितु समूचे विश्व में भगवान शिव असंख्य भक्तों के हृदय में विराजते हैं। दुनिया के सभी मंदिरों में शिव हैं।शिव अनादि काल से समूची मनुष्यता को एक लय में बांधें हुए हैं।शिव ही अकेले ऐसे देव हैं, जो मंदिर में भी विराजमान हैं और शमशान में भी अन्य किसी देव को यह दर्ज़ा हासिल नहीं।मानो शिव हमें सदैव यह संदेश देना चाहते हैं कि दुनियादारी में भरपूर रमो लेकिन अंतिम गंतव्य शमशान ही है,जहाँ पर मैं तुम्हारे अंतिम स्वागत को हाज़िर हूँ।भगवान शिव को सृष्टि के जन्म से मृत्यु तक चक्र को पूर्ण करने के कारण काल देव कहां जाता है।
शिव ही एक मात्र ऐसे ऊर्जा पुंज हैं ,जिनका उल्लेख सभी वेदों और पुराणों में मिलता है।
शिव को ‘अथर्ववेद’ में शिव को सहस्त्र नेत्र वाला कहां गया है जबकि ‘यजुर्वेद’ और ‘ऋग्वेद’ में शिवतत्त्व का विस्तार से वर्णन मिलता है।
शिव एक ऐसे देव हैं,जिनकी ब्रह्म स्वरुप ‘लिंग’ और ‘मूर्ति’ स्वरुप प्रतिमा के रुप में पूजा का विधान है
महर्षि दयानंद सरस्वती और उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज में यूँ तो मूर्ति पूजा का एकदम निषेध है।लेकिन ईश स्तुति के लिए स्वामी दयानंद ने भी कईं स्थानों पर शिव पूजन के सर्वोच्च ग्रन्थ -‘रुद्राअष्टाध्यायी ‘ के मंत्रों का सहारा लिया है। स्वामी जी की प्राण पुस्तक’ संस्कार विधि ‘ में ‘स्वस्तिवाचनम’ और ‘शान्तिप्रकरण’ के 13 मंत्र इसके प्रमाण हैं।
स्कन्द पुराण’ में ज्योतिर्लिंग का महत्व प्रतिपादित करते हुए वर्णन आता है कि आकाश ही लिंग रूप है और पृथ्वी उसकी पीठिका (आधार ) है।प्रलय काल में सृष्टि ,देवता आदि इसी लिंग में समाविष्ट हो जाते हैं।समस्त देवताओं का प्रादुर्भाव भी ज्योतिर्लिंग से ही माना गया है।
भारतीय मौसम चक्र में ऋतु परिवर्तन का समय होता है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि का व्रत रखने से शरीर निरोगी बनता है, संभवतः इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए प्राचीन ऋषियों ने व्रत की परंपरा को प्रोत्साहित किया।
यदि हम शिवालयों में स्थापित शिव परिवार को गौर से देखें तो हमें कईं बातों की अप्रत्यक्ष प्रेरणा मिलती है। शिव का वाहन नंदी (बैल),माता पार्वती का शेर ,गणेश जी का वाहन चूहा और शिव के दूसरे पुत्र कार्तिकेय का वाहन मोर है।शिव के गले में साँप झूल रहे हैं।बैल का परम शत्रु सिंह है।साँप का सर्वप्रिय भोजन चूहा है जबकि मोर का भोजन सांप है।परस्पर परम शत्रु होते हुए भी ये सब एक साथ, एक ही परिवार में प्रेमभाव से रहते हैं।अर्थात जीवन के सामाजिक और नैतिक परिप्रेक्ष्य में यदि हमें परस्पर अन्तर विरोधों और संघर्षों का सामना भी करना पड़े तो भी हम प्रेमपूर्वक यथायोग्य अपने कर्तव्यों का समुचित पालन करते रहना चाहिए यही ‘शिवत्व’ का सार भी है।
शिवलिंग पर पूजन के रुप में चढ़ाई जानेवाली वाली सामग्री हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी हैं। दूध,दही,घी,शहद बेल तथा फल आदि जब हम इन वस्तुओं को बार -बार भगवान को समर्पित करेंगे तो ये सब हमारे घरों में लाईं जाएँगी ,जब घरों में होंगी तो हम इनका सेवन भी करेंगे और सदा -सर्वदा स्वस्थ बने रहेंगे।जब आरोग्यता आपकी दासी होगी तो स्वमेव वहां शिवत्व का वास होगा।कहा गया है स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मष्तिष्क का वास होता है।जब आपका मष्तिष्क चुस्त-दुरुस्त होगा तो आपके सभी कार्य विवेकपूर्ण और परिणामकारी होंगे,स्वाभाविक रूप से उस समय गणेश जी का आशीर्वाद सब पर ही होगा। गणेश जी को बुद्धि का देवता कहां गया है। यहाँ एक बात यह भी समझने योग्य है कि जिस चीज़ को हम भगवान को अर्पित नहीं करते उसका सेवन स्वयं भी नहीं करना चाहिए।शराब और मदिरा,मांस शिवलिंग पर निषेध है, तो उसका जीवन के खानपान में भी निषेध अनिवार्य होना चाहिए।