ओह माँजी !आप भी न....अच्छा नहीं लगता जब आप इस तरह के निराशा जनक शब्द बोलती हैं। अभी तो आप बहुत साल जिएँगी। पोते-पोती छोटे हैं, उनकी शादी पर उन्हें आशीर्वाद देने से पहले थोड़े ही जाने देंगे आपको....सौम्या अपनी सासू माँ के हाथ में चाय की प्याली थमाते हुए बोल पड़ी।
बहू की ओर प्यारभरी निग़ाहों से एकटक देखते हुए कलावती अपने दिल में उमड़ते हुए भावों को एक पल के लिए सहेजती तो दूसरे ही पल उन्हें कुचल डालती।सोचने लगती न जाने कैसे कह देते हैं लोग कि बहू तो कभी बेटी जैसी हो ही नहीं सकती है। शायद वे लोग बहू को बेटी जैसा प्यार ही नहीं देते होंगे। इन्हीं ख़यालों में डूबते-- उतरते कल्याणी ने चाय की अंतिम घूँट गले से नीचे उतारी ही थी कि उसे अपनी सहेली अरुणा के साथ किए गए वायदे का ध्यान आया कि वह उसका इंतजार कर रही होगी। बहू से जल्दी लौटने की बात कहकर कल्याणी अरुणा से मिलने चल पड़ी।मन ही मन सोच रही थी कि अब ज़िन्दगी का क्या ठिकाना न जाने कब अपने असली घर जाने का बुलावा आ जाय।अब उसे अपना सभी कुछ बेटे -बहुके हवाले कर निश्चिंत हो जाना चाहिए। घर पहुँचते ही आज वह बेटे राहुल से बात कर अपनी जमा पूँजी जो कुछ भी उसके पति उसके पास छोड़ गए हैं राहुल को थमा देगी। उसके बाद भी तो आख़िर बेटे को ही मिलना है तो क्यों न समय रहते ही उसे सौंप दिया जाए।इन्हीं विचारों में खोए हुए न जाने कब वह अरुणा के पास पहुँच गई उसे तब अहसास हुआ जब रुँधे गले से निकलती आवाज़ ने उसका स्वागत किया।
आज अरुणा के मुरझाए चेहरे की बुझी हुई आँखों ने उसे बिना कहे ही बहुत कुछ बता दिया। कल्याणी का हाथ पकड़ कर रूँधे कण्ठ से बोल पड़ी--"बहन मैंने बहुत बड़ी भूल कर दी।अपना सर्वस्व बच्चों पर यह सोचकर न्यौछावर कर दिया कि मुझे अब जीना ही कितने दिन है।यही सोचकर सबकुछ बच्चों में बाँट दिया। अब मेरे पास कुछ भी नहीं है सिवाय इस वृद्ध शरीर के जो सम्भाले नहीं सम्भलता।इसीलिए अब मैं किसी के लिए कोई मायने नहीं रखती।मेरी हर बात नज़रन्दाज़ कर दी जाती है।अपने ही घर में परायों जैसा बर्ताव होगा,कभी नहीं सोचा था।" अरुणा के मुरझाए झुर्रियों से भरे चेहरे पर ढुलकते हुए आँसुओं को पोंछते हुए कल्याणी को नेक सलाह मिल गई।मन में संकल्प लिया कि जीते जी अपना हाथ जगन्नाथ ही रखेगी।इसी में उसकी भलाई है।