चीन जैसा गरीब विकासशील देश निक्सन युगीन निर्णयों की बदौलत अमरीका द्वारा फ्रैंकस्टीन बना दिया गया। आज चीन शक्तिशाली है। यह शक्ति उइघुर मुसलमानों पर भारी पड़ी। उइघुर मुसलमान वास्तव में उत्तर-पश्चिम क्षेत्र के शिनजियांग प्रान्त के मूल निवासी हैं। चीन एकविचारी समाज के फलसफे से शासित है। कम्युनिस्ट पार्टी की एकमुश्त तानाशाही से चीन का शासन चला रहा है। कम्युनिस्ट शासकों ने उइघुर मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। हज, रोज़ा, ज़कात, खतना,बुरका या हिजाब आदि सब पर रोक लगा दी है। यहाँ तक कि नमाज़, इबादत को अपने प्रकार से परिभाषित किया गया है। 70% मस्जिदें तोड़ दी गई हैं। बची मस्जिदों पर जिहादी झंडा, लाउडस्पीकर, पोस्टर नहीं होंगे। यहाँ तक कि इस्लाम की धार्मिक पुस्तक 'कुरान' को भी संशोधित करने की योजना है। उइघुर मुसलमानों को जबरन कैम्पों में लाकर मज़हब त्याग कर जीने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ऐसी घटनाएं कहीं और होती तो मुस्लिम जगत से आवाज़ें आती। मक्का व मदीना जैसे धार्मिक स्थल वाला सऊदी अरब नपुंसको की तरह शांत है। बल्कि सशक्त दमनकारी चीन देश के पक्ष में खड़ा है। ईरान, पाकिस्तान, बंगलादेश, इंडोनेशिया, सीरिया, यमन, इराक सहित सभी मुस्लिम देश नुक खड़े हैं। इन सभी की जानकारी में है-
१.चीन एक शक्तिशाली देश है
२. चीन का उइघुर मुस्लिमों के प्रति रुख दमनकारी है
३. कुरान में संशोधन सहित मुस्लिम धार्मिक गतिविधियों पर पाबंदी लगाई गई है
४. उइघुर मुसलमानों पर कम्युनिस्ट शासक अत्याचार कर रहे हैं
आज उइघुर मुसलमानों का वर्ग चीन सरकार के पक्ष में बोलता है। जब पाकिस्तानी प्रेस ने पाकिस्तानी वज़ीर-के-आज़म इमरान खान से उइघुर मुस्लिम पर चीनी कम्युनिस्ट शासकों के अत्याचारों पर प्रतिक्रिया जाननी चाही, वह कहने लगा कि उनकी इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। इसी प्रकार पाकिस्तान की सभी कट्टरपंथी तंजीमों के आका व दहशतगर्द इस विषय पर खामोश हैं। इस बात को अब चार महीने हो चुके हैं। ….इसी सामाजिक बीमारी को स्टॉकहोम सिंड्रोम कहते है।
स्टॉकहोम सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति होती है, जब परिताड़ित, हिंसा का शिकार या अगुवा होने वाले व्यक्ति को अपने दमनकारी, शोषक, अत्याचारी या अपहर्ता के साथ सहानुभूति हो जाती है। ये दमन या कैद के दौरान अस्तित्व के लिये एक रणनीति का रूप माना जाता हैं। निल्स बेजरोट ने इस शब्द को गढ़ा जोकि एक स्वीडिश अपराध-विज्ञानी और मनोचिकित्सक थे।
१९४७ में भारत का विभाजन हुआ। 'डायरेक्ट एक्शन' के तहत जिन्ना की मुस्लिम लीग व कट्टरपंथी जिहादी भीड़ ने लाखों की हत्या की, औरतों से बलात्कार किए। इस दौरान, महिलाओं का अपहरण, धर्म परिवर्तन की घटनाएं हुई। ये गाज समान रूप से सिखों पर गिरी। सिख श्री ननकाना साहिब सहित अपने ऐतिहासिक स्थानों से वंचित हो गए। लगा कि ये जख्म सदियों तक सालते रहेंगे। लेकिन जिस प्रकार से बबर खालसा इंटरनेशनल का वाधवा सिँह बबर लाहौर रहकर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की गोद में बैठकर जिहादवादियों के सोहिले गाता है, वह भी स्टॉकहोम सिंड्रोम ही है।
इतिहास में है। कश्मीरी पंडित शैव थे। जब मुग़ल औरंगज़ेब ने तिलक और जनेऊ पर पाबंदी लगाकर जबरन धर्म परिवर्तन की बात प्रारम्भ की। तो बचाने की मुहिम वाले किसी मठ के शैव धर्माधिकारी नहीं थे। बल्कि इस अंधे जिहादवाद विरुद्ध संघर्ष करने वाले नायक गुरु तेग बहादुर जी थे। औरंगज़ेब के कट्टरपंथी कृत्यों से भारत त्रस्त था। जिसके विरुद्ध 'हिन्द दी चादर' गुरु तेग बहादुर जी ने चाँदनी चौक स्थित शरिया अदालत में शीश देकर कर लासानी शहादत दी। लेकिन आश्चर्य तब होता है जब कश्मीरी पंडितों के सामाजिक समूह उस दिन को स्मरण करते हुए गुरु तेग बहादुर जी के शहादत पर्व को नहीं मनाते हैं। उनके जीवन में इस घटना का कोई महत्व नहीं है। इसी के मूल में एक ही बात निकल कर सामने आती है और वह है- कश्मीरी हिंदुओं में व्याप्त स्टॉकहोम सिंड्रोम।
यही नहीं जम्मू-कश्मीर में रहने वाले सिख समुदाय में हिंदुओं के प्रति नफरत और जिहादियों से प्रेम कोई हैरान की बात नहीं। चुनना पड़े तो जम्मू कश्मीर का सिख हिंदुओं के विरुद्ध और मुस्लिमों के पक्ष में खड़ा होगा। बीमारी एक ही है। १९४८ का मीरपुर नरसंहार को पढ़-सुन कर हिन्दू-सिखों के मन अगर एक दूसरे के विरुद्ध व अपरोक्ष रूप से जिहादियों के पक्ष में है तो वह स्टॉकहोम सिंड्रोम व्याधि के कारण।
१९८४ में, नेहरूवादियों ने सिख नरसंहार करवाया। आज भी आपको ऐसे सिख मिल जाएंगे, जो राजीव गाँधी, उसके परिवार व उसकी पार्टी के मुरीद हैं। क्या कारण है कि पँजाब में काँग्रेस की कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार चल रही है? पंथिक व नियो-टकसाली सिख अपरोक्ष रूप से काँग्रेस की मदद कर रहे हैं। इसी को स्टॉकहोम सिंड्रोम कहते हैं।
कम्युनिस्ट चीन में अपनी विचारधारा पर चलकर मुसलमानों पर अत्याचार करते हैं। भारत में मुसलमान कम्युनिस्ट विचारों वाले समूह के साथ हैं। यही नहीं, भारत मे कम्युनिस्ट कट्टरपंथी इस्लामी तंजीमों को कवर-फायर देते नज़र आते है। यह सब स्टॉकहोम सिंड्रोम की महिमा है।
देश, देश हित, देश के गरीबों की चिंता, सेवा, त्याग, साँझीवालता, राष्ट्र-सर्वोपरि आदि वो अलग अलग प्रकार की वेक्सीनें हैं, जो स्टॉकहोम सिंड्रोम का इलाज करती है।
आइए कोरोना महामारी के बाद, मन-मस्तिष्क पर काबू करें और स्टॉकहोम सिंड्रोम को हराकर देश जिताएं।