परिस्थितियाॅ॑ हमेशा एक जैसी नहीं रहतीं यह दौर भी गुजर जाएगा ....
फिर मुस्कुराहटें खिलखिलायेंगी
फिर गलबहियां डाली जायेंगी
फिर होगा गली मोहल्लों में शोर
फिर होगी वही सुहानी भोर।
फिर घरों के बन्द दरवाजे खुलेंगे
फिर मुस्कुराते चेहरे दिखेंगे
बगल वाली आंटी देहरी पर आयेगी
माॅ॑ स्वागत में बिछ बिछ जायेगी
फिर बॅ॑धेगी रिश्तों की डोर
फिर होगी वही सुहानी भोर।
फिर आॅ॑गन में चौपालें सजेंगी
फिर मंदिरों की घंटियां बजेंगी
फिर होगी अरदास और अजान
फिर होगा सावन वही रमजान
फिर चलेगा मिलने मिलाने का दौर
फिर होगी वही सुहानी भोर।
फिर स्कूलों के दिन बहुरेंगे
फिर बच्चों के बैग खुलेंगे
फिर उंगलियों में कलम खेलेगी
फिर काॅपियों में शब्द हॅ॑सेंगे
फिर मध्यान्तर करेगा विभोर
फिर होगी वही सुहानी भोर।
फिर होंगे बाजार गुलजार
हर्ष से मनेगा हर त्योहार
फिर पकवानों की सुगन्ध महकेगी
फिर थालियाॅ॑ घर बदलेंगी
जाति धर्म का नहीं होगा जोर
फिर होगी वही सुहानी भोर।