भारत वर्ष में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व का एक अमूल्य धरोहर के रुप में हिन्दुओं का पवित्र ग्रंथ रामायण है।
यह ग्रंथ समाज में केवल धार्मिक एवं सामाजिक ग्रंथ ही नहीं बल्कि सामाजिक नीतियों को जोड़ने वाला भी है। रामायण जैसे महान ग्रंथ से प्रभावित होकर हमारे प्राचीन संत मनीषियों स्वामी विवेकानंद,गोस्वामी तुलसीदास, छत्रपति शिवाजी,राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आदि ने देश में रामराज्य लाने सपना देखा था। विश्व की प्रसिद्ध समाचार एजेंसी जो कभी भी हिन्दू संस्कृति की महानता को गले नहीं उतार पाती उसने भी पिछले कुछ वर्षों से रेडियो पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में यह स्वीकार किया है,कि रामायण भारत में ही नहीं विदेशों में भी लोकप्रिय है।
इण्डोनेशिया,मांरीशस, सिंगापुर,मलेशिया,कम्बोडिया आदि देशों की संस्कृति का रामायण अभिन्न अंग है। थाईलैण्ड में रामायण को रमगीत के नाम से जाना जाता है।रुस में रामायण का मंचन रुसी भाषा में किया जाता है। इण्डोनेशिया के बालीदीप की तो आत्मा ही रामायण है। इण्डोनेशिया मुस्लिम राष्ट्र होने के कारण यहां इस्लाम के प्रचार में रामायण का सहारा लिया जाता है। बीच बीच में दृश्यों की समाप्ति पर इण्डोनेशियाई इस्लाम का प्रचार करते हैं। इण्डोनेशिया मुस्लिम बाहुल्य राष्ट्र होने के कारण रामायण वहां हिन्दु मुस्लिम सभी में लोकप्रिय है।
इण्डोनेशिया के नागरिकों का मानना है,कि रामायण की घटनाएं उनके अपने देश की हैं, इसलिए राम उनके अपने देश के ही ग्रंथ हैं। इण्डोनेशिया में भी अयोध्या है,जिसे वे"योग्या" के नाम से पुकारते हैं। वहां सीता को सिंता और रामभक्त विभीषण को'गुणवान' के नाम से जाना जाता है। इण्डोनेशिया के सुप्रसिद्ध प्राम्बावाना महादेव का मन्दिर जिसमें सम्पूर्ण रामायण चित्रित है। जिसमें 80% शब्द संस्कृत में हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय रामायण सम्मेलन में आई केकैयी की भूमिका अदा करने वाली इण्डोनेशियाई कलाकार रेहानाकासिम गर्व से कहती हैं,कि रामायण उन्हें सबसे प्रिय है। क्योंकि रामायण के पात्र एवं घटनाएं सामाजिक जीवन के सबसे करीब हैं। हम सभी जानते हैं,कि रामायण धर्म व नीति का एक जीवन्त दस्तावेज है। यह ग्रंथ अनेक विचारकों,संतों एवं मनीषियों के साक्षात प्रवचनों का आधार है। कन्फ्यूशियस की शिक्षा के आधार पर छोटा भाई को बड़े भाई की सेवा के लिए जीवन्त त्याग करना चाहिए यह सब हमको रामायण के माध्यम से भारत व लक्ष्मण के चरित्रों में प्रतिबिंबित भ्रातृभक्ति से सीखने को मिलता है। माता-पिता व बड़ों की आज्ञा का पालन करना, देशभक्ति, परोपकार, दूसरों का सम्मान ऐसी अनेकों समाजोपयोगी बातें हमारे धर्मग्रंथों द्वारा हमें सिखाई जाती है। हमारे वेद, उपनिषद,सहिंताएं व स्मृतियां आज भी युगानुकुल है। इसी कारण आज सम्पूर्ण विश्व ने रामायण के महत्व को स्वीकारा है।
अब प्रश्र उठता है,कि इन विश्व प्रसिद्ध अमूल्य धरोहरों का महत्व केवल भारत में रहने वाले वामपंथी, मुस्लिम, कट्टरपंथी तथा मैकाले की आधुनिक संतानें क्यों नहीं समझती-? हमारा इतिहास सदैव से ही गौरवशाली रहा है। पिछले गत दिनों वैश्विक संक्रमण से जानमाल बचाव के लिए लाक डाउन के दौरान जनता की मांग पर भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रसार भारती द्वारा रामानन्द सागर कृत रामायण धारावाहिक का पुनः प्रसारण किया गया जिसको काफी पसंद भी किया गया। जिसके विरुद्ध हमारे कुछ वामपंथी, कट्टरपंथी मैकाले की आधुनिक संतानें इस बात को लेकर कि रामायण को केवल धार्मिक व साहित्यिक ग्रंथ ही मानना चाहिए इसे सामाजिक नीति से अलग रखना चाहिए को लेकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चले गये इन कट्टरपंथी मैकाले की आधुनिक संतानों का रामायण जैसे धारावाहिक के पुनः प्रसारण पर रोक लगाना कितना हास्यास्पद है। इनका मंतव्य ही इस प्रकार के कृत्यों से हिन्दुत्व को कोसना है।
आधुनिकता की होण में रुग्ण हो चुके समाज की गति को भांपकर जिस प्रकार सस्ती व बाजारु पत्रिकाएं बिकने के लिए अपने साहित्य में अश्लीलता का समावेश करती हैं,उसी प्रकार ये कट्टरपंथी मैकाले के आधुनिक पुत्रों का काम ही हिन्दुत्व को कोसना और समाज से सस्ती लोकप्रियता हासिल करना है। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ जिन्हें पता नहीं,वे सोचते हैं कि भारत में हिन्दुत्व का विरोध करना ही धर्मनिरपेक्षता है। पिछले वर्षों में भारतीय संसद के अंदर सरस्वती वन्दना, वन्देमातरम का विरोध एवं फिल्म निर्माता दीपा मेहता द्वारा भारतीय संस्कृति के विपरीत समलैंगिकता को मान्यता देना, प्रसिद्ध चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन द्वारा भारतीय देवी-देवताओं के चित्रों को नग्न रुप में प्रदर्शित करना भी इसी विकृत मानसिकता का प्रतीक है।
हमारी सांस्कृतिक जड़ों को काटने के लिए मुस्लिम आक्रांताओं ने मध्यकालीन इतिहास को तोड़-मरोड़कर लिखवाया इतिहास लेखन में मुस्लिमों द्वारा एक प्रकार से असफल प्रयास भी हुआ पिछले दो तीन वर्षों से जब इतिहास पुर्नलेखन की बातें सामने आ रही है,तो सभी तथाकथित सेकुलर जमात इतिहास के भगवाकरण का राग अलाप रहे हैं।
हिन्दू धर्म वास्तविक स्वरुप व संस्कृति से अनविज्ञ तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी लोगों को यह जमात मूलरुप में पश्चिमी संस्कृति से प्रेरित व प्रभावित करती हैं। जिसका एक वर्ग साम्यवादी होने का ढोंग करता हैं। पश्चिमी संस्कृति में आकंठ डूबे इस जमात का सांस्कृतिक सूर्य हमेशा पूरब से नहीं अपितु पश्चिम से ही उगता है।