यूं तो हमारी देवभूमि उत्तराखंड अपनी अकल्पनीय, अनूठी व अलौकिक सुंदरता के कारण देश के अन्य प्रांतों से भिन्न है ही है। किंतु प्राकृतिक सुंदरता ही इसकी भव्य रमणीयता का राज नहीं,यहां की समृद्ध, लोक परंपराएं ,वेशभूषा,खान-पान , रहन सहन आदि ऐसे तमाम सांस्कृतिक और पारंपरिक धरोहरे हैं जो इसे पृथक बनाती है। जी हां साथियों आज हम बात कर रहे हैं अपने उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में बनने वाले स्वादिष्ट खाद्य व्यंजनों की,
माना जाता है कि जो व्यक्ति हमारे इन पारंपरिक पहाड़ी व्यंजनों का एक बार स्वाद चख लेता है उसके लिए इनका स्वाद अविस्मरणीय हो जाता है।
पहाड़ों के इन स्वादिष्ट व्यंजनों व पकवानों में उत्तम स्वाद व गुणवत्ता के साथ-साथ पौष्टिकता भी प्रचुर मात्रा में पाई जाती है, हमारे यह सभी व्यंजन स्वास्थ्य की दृष्टि से भी सर्वोत्तम है यदि बात करूं अपने पहाड़ों के प्रमुख स्वादिष्ट व्यंजनों की तो जैसे- फाणु, झ्वली (कढ़ी), चैंसु, कोदे (मंडुवा) की रोटी, आलू की थिंचोंणी, मूली की थींचवाणी आलू का झोल, झंगोरे का भात, अरसा, रूटाना, भांग की चटनी, भट का चुलकाणि, डुबुक, गहत (कुलथ) का गथ्वाणि, गहत की भरवा रोटी, गुलगुला, झंगोरे की खीर, स्वाला,उड़द (काली दाल) की पकोड़ी आदि ऐसे अनेक व्यंजन, एवं पकवान हमारे पहाड़ी चुल्हो पर पकते हैं , और इसके साथ ही भांग व भंगजीरा की स्वादिष्ट चटनी का एक अनोखा आनंद।
अब बात इन व्यंजनों को बनाने में प्रयुक्त सामग्रियों की-----
*फाणु*------यदि बात करें फाणु की तो इस व्यंजन में कई दालों का इस्तेमाल किया जाता है इन सभी दालों को व्यंजन बनाने से पूर्व में भिगो कर रखा जाता है अच्छी तरह भीगने के उपरांत इन्हें पीसा जाता है और फिर पकाया जाता है यह व्यंजन चावल के साथ परोसा जाता है,
*मंडवा(कौदा) की रोटी*-----मडुवे को हमारे पहाड़ की आम बोलचाल भाषा में कौदा कहा जाता है ।मंडवे की खेती अधिकतर पहाड़ी इलाकों में ही की जाती है , मंडवे का दाना गहरे लाल व हल्के भूरे रंग का होता है इसकी रोटी भी भूरे काले रंग की होती हैं , मडुवे की रोटी चबाने में काफी कोमल व पाचन में सुलभ होती है
*आलू , मूली की थिंचोंणी* ----थींच्चवाणी का प्रयोग पहाड़ों में ज्यादा किया जाता है इस व्यंजन को चावल और रोटी दोनों के साथ प्रयोग कर सकते हैं
*चैंसु* ----चैंसु उड़द की दाल या काली दाल को पीसकर बनाया जाता है माना जाता है कि *चैंसु का स्वाद लोहे के बर्तन में और भी बढ़ जाता है
*दाल की भरी हुई रोटी*----जिस प्रकार शहरों में आलू मूली आदि के परांठे बनाए जाते हैं उसी प्रकार हमारे पहाड़ों में पहाड़ी दालों जैसे गहत आदि के पराठे बनते हैं जिन्हें आम भाषा में भरी हुई रोटी भी कहते हैं इन्हें हम बिना तेल के भी बना सकते हैं
*भांग व भंगजीरा चटनी*---- भांग व भंगजीरा की चटनी, सभी व्यंजनों के साथ संयुक्त रूप से प्रयोग की जाती है इन्हें और स्वादिष्ट बनाने हेतु इनमें प्याज लहसुन हरी मिर्च धनिया आदि प्रयुक्त होता है
*अरसा*----अरसा भी गढ़वाल का एक पारंपरिक मीठा पकवान है जो शुभ अवसरों पर बनाया जाता हूं इसे बनाने के लिए चावल को बारीक आटे की तरह पिसा जाता है और फिर इसे गुड़ की चाशनी से गूंथा जाता है हमारी पहाड़ों में जब कोई स्त्री अपने मायके जाती हैं तो वह समौंण के रूप में अपने ससुराल *अरसा पकवान* भी साथ लाती है
*झंगोरे की खीर*-----चावल की खीर की भांति ही पहाड़ों में झंगोरे की खीर बनाई जाती है झंगोरा पेट के लिए काफी उत्तम माना जाता है ।
*जख्या का तड़का*----जख्या के बीज सरसों के बीज के समान ही सूक्ष्म होते हैं जिसका दाल सब्जी आदि में तड़का लगाया जाता है पहाड़ों में लोग इसे जीरा के स्थान पर प्रयुक्त करते है विशेषकर कद्दू की सब्जी में इसका प्रयोग काफी बेहतर माना जाता है । किंतु बदलते व बढ़ते वक्त के साथ साथ हमारे पहाड़ों में इन व्यंजनों को बनाने का प्रचलन भी अब धीरे धीरे कम होता चला आ रहा है। जहां एक ओर देश के अन्य प्रांतों के खाद्य व्यंजन हर किसी की जुबां पर वाहवाही बटोर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हमारे पहाड़ी व्यंजन हमारे पहाड़ी चूल्हो तक ही सीमित आखिर क्यों? यह एक बड़ा सवाल हमारा स्वयं से है । हो सकता है कि हमारे पहाड़ के लोगों की अपने व्यंजन उत्पादों पर रुचि कम हो जो कि एक बड़ा गंभीर व चिंतनीय विषय है, ऐसे तमाम स्वादिष्ट व्यंजन हमारे पहाड़ों में बनते हैं जो शारीरिक एवं मानसिक विकास लिए काफी अहम माने जाते हैं ।
जय देवभूमि , जय उत्तराखंड 🙏