चुपके- चुपके आँसू पोछते देख माँ को पूछी नन्हीं गुड़िया,
मम्मा क्यों तुम लोती हो .... ..क्या मुझसे तुम गुच्छा हो।
सुन तोतली जुबान गुड़िया की माँ ने यों अंक लगाया,
जैसे सरहद से विजयी हो उसका फ़ौजी हो घर आया।
नहला कर अश्रुओं से गुड़िया को बोली में यों उससे,
तिनका एक पड़ गया था आँख में निकाल रही थी आँसुओं से।
थी चंचल गुड़िया नहीं समझती थी दुनिया का दस्तूर,
हठ कर लगाई बिंदी माथे और माँग में भर दिया सिंदूर।
पोंछ डाला डबडबाई आँखों से माँ ने कहकर बिटिया से यों ,
तू है अभी बहुत नादान, मेरी लाडो !मैं तुझे ये कैसे समझाऊँ ।
हुई कुछ सयानी अब गुड़िया जाने लगी थी पाठशाला,
देख दूसरों को पापा के सङ्ग प्रश्नों की बौछार कर डाला।
कहाँ रहते हैं पापा मेरे मम्मा तुम बतलाओ
आज तक नहीं देखा उनको क्यों नहीं आते वो।
रख सीने पर पत्थर तब बोली शहीद की पत्नी यों,
पापा तेरे जन्म से पहले ही भारत माँ की गोद में सो गए।
दुश्मनों से लड़ते लड़ते स्वयं देश के लिए क़ुर्बान हो गए,
आओ प्यारी गुड़िया देखो !पापा की इस वर्दी को नमन करो।
हो तुम निशानी वीर सपूत की वन्दे मातरम कह सल्यूट करो,
ख़ुश होते होंगे पापा देख देख आसमाँ से अपनी गुड़िया को ।
देख पापा की वर्दी गर्व से बोली बिटियारानी यों,
तुम चिंता मत करना मम्मा बड़ी होकर मैं पहनूँगी ।
बन बहादुर बेटी छोड़ गए काम अधूरा पापा जो,
भारत माँ की सेवा में हो तैनात हो करूँगी काम पूरा वो।
सुन बिटियारानी की ओजस्वी वाणी माँ ने माथा चूम लिया,
मनही मन अपने प्रिय के सपनों को पूरा होते देख लिया।