ज़िन्दगी न आर सी न पार सी
बस गुज़र रही है गुनहगार सी
बढ़ते संकट में कोशिशें बेहिसाब
जीने की आस
और एक विश्वास...
कि लौट आऍंगे पुराने दिन
दोहराएगा वक्त खुद को।
हाॅं वक्त दोहराता है खुद को
तभी तो घड़ी की सुई छूती है
हर अंक को दो बार
एक बार उजाले का संकेत
एक बार अंधेरे का
समझाती है सुई कि
हर रात के बाद सुबह होती है...
लेकिन....
अपनी सुबह पर भी मत इतराना
हर सुबह के बाद रात जरूर आती है
जो उजाले की अहमियत बताती है।
तो छोड़ दें इतराना,
अपना लें विनम्रता सदा के लिए..
ताकि वक्त भी छोड़ दे अपनी जिद
और हो जाए एक खूबसूरत सुबह
हमेशा के लिए......!!!
ज़िन्दगी न आर सी न पार सी